भाजपा अध्यक्ष नितिन गडकरी ने पार्टी में मंथन का जो क्रम चलाया उसे पानी बिलौने से अधिक नहीं कहा जा सकता। गडकरी इससे कौन से मक्खन की उम्मीद कर रहे हैं। भाजपा में तथा भाजपा नेताओं के बारे में जो भी निर्णय लिए गए, उसमें लोकतंत्र कहीं केन्द्र में दिखाई नहीं देता। सारी बैठकों पर खर्च तो जनता का धन ही हो रहा है और लोकतंत्र प्रतिबिम्बित नहीं होना पार्टी के राजनीतिक कद को छोटे से छोटा किए जा रहा है। पार्टी में संख्याबल के आगे सिद्धांत गौण हो गए। छोटी सी तृणमूल पार्टी ने जो करके दिखाया, वह भाजपा के लिए सबक हो जाना चाहिए। केवल भ्रष्टाचार के विरूद्ध नारे लगाने से पार्टी का सम्मान नहीं होने वाला। न ही आडवाणी के जेल चले जाने या रथयात्रा से दिलों में जगह बनने वाली है। सम्मान प्राप्त करने का एक ही मार्ग है- चाहे सत्ता में हो या विपक्ष में ईमानदारी से अपनी भूमिका का निर्वहन करना। आज तो धारणा यह बन चुकी है कि भाजपा कांग्रेस से मिली हुई है। तब उसके साथ भी वही व्यवहार किया जाएगा, जो कांग्रेस के साथ अन्ना हजारे ने किया है। लोग चुनाव के पहले ही समेट देंगे।
कर्नाटक का घटनाक्रम भाजपा के लिए दु:खान्तिका ही साबित होगा। जिस प्रकार सुषमा स्वराज और वेंकैया नायडू के नाम चर्चा में आए हैं, वे भविष्य की ओर कुछ और ही संकेत कर रहे हैं। भाजपा में ब्राह्मणवाद और राजपूतवाद के जो घुन लगे हैं, वे भी कोंकणी घुनों से कम नहीं हैं। अब उत्तराखण्ड के मुख्यमंत्री पद को लेकर फिर उथल-पुथल हो रही है। बी.सी. खण्डूरी का नाम फिर से ऊपर चल रहा है। यदि यह सच हो जाता है, तो भाजपा के सामूहिक विवेक पर भी प्रश्न चिह्न लग जाएगा। जिस भ्रष्टाचार के कारण खण्डूरी को हटाया गया, उसी खण्डूरी को दूसरे के भ्रष्टाचार के कारण ईमानदार मुख्यमंत्री के रूप में पुन: प्रतिष्ठित किया जा रहा है। यह भी सिद्ध हो जाएगा कि भाजपा की आंख में लोकहित के अलावा भी कुछ और है। झारखण्ड, मध्यप्रदेश, छत्तीसगढ़ में तो स्पष्ट दिखाई दे रहा है। हो सकता है यहां भी पार्टी चुनाव के कुछ समय पहले मंथन करने लगे। जैसा कि उत्तर प्रदेश और उत्तराखण्ड में कर रही है। मिलेगा कुछ नहीं।
उधर सोनिया गांधी की वापसी से चर्चाओं का एक नया दौर चलेगा। बीमारी की जानकारी देश को है। सब जानते हैं, अब उनकी सक्रियता पहले जैसी दिख पाना मुश्किल रहेगी। ऎसे में यह भी हो सकता है कि वह ताबड़तोड़ में राहुल गांधी को प्रतिष्ठित कर दें। जो भी होगा अचानक होगा।
इस परिप्रेक्ष्य में भाजपा क्या भूमिका निभा पाएगी देश के सामने? आज कांग्रेस और भाजपा दोनों के पास राजनेता नहीं हंै। राज्यों में भी भ्रष्टाचार चरम पर है। कोई भी जन प्रतिनिधि सत्ता में आकर देश के लिए कुछ करना ही नहीं चाहता। स्वयं को ही देश मानता है। जिस प्रकार नेताओं के भ्रष्टाचार सामने आ रहे हैं, युवा वर्ग का विश्वास डगमगा रहा है, दलों में भी फूट और अस्थिरता बढ़ती जा रही है, पुलिस और न्यायपालिका सत्ता की ओर देख रही है, उस हाल में भाजपा की बौखलाहट अक्षमता ही प्रकट करती है। भविष्य को मानो देखने की बात ही नहीं रह गई। अच्छा तो यह होगा कि जिन नेताओं के विरूद्ध पार्टियां निर्णय करने से कतराती हैं, उनके लिए जनमत संग्रह करके उन्हें आईना दिखा दिया जाए।
गुलाब कोठारी
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