Gulabkothari's Blog

September 2, 2012

जनता के धन की होली

Filed under: Special Articles — gulabkothari @ 7:00
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हमारे देश की यह कैसी स्थिति है कि छह दशक बाद भी हमारे नेता लोकलुभावन आश्वासनों के आधार पर चुनाव जीत रहे हैं। जीतने के बाद वादे पूरे करे या न करे, इसकी चिन्ता भी न पार्टी को रहती है, न ही मतदाता को। इससे बड़ी हास्यास्पद बात किसी लोकतंत्र में क्या हो सकती है? ऊपर से हमारे शहंशाह, मुख्य चुनाव आयुक्त, जो कुर्सी संभालते ही भाषण देना शुरू कर देते हैं, जैसा कि आजकल प्रेस परिषद के अध्यक्ष कर रहे हैं और बिना किसी सार्थक परिणाम के निवृत्त हो जाते हैं। फिर किसको डर लगेगा, इन अधिकारियों का।

 

 

हाल ही गुजरात में कांग्रेस ने घोषणा की कि यदि वह सत्ता में आई तो सबको आवास देगी। भाजपा क्यों पीछे रहती! उसने तो आवास बनवाकर योजना लागू भी कर दी है। इसी तरह छत्तीसगढ़ सरकार जो चना पांच रूपए किलो दे रही थी, अब पांच रूपए का दो किलो देने लग गई है। चुनाव में अभी समय बाकी है। फिर भी क्यों होने लगी घोषणाएं मतदाता को लुभाने की अभी से? हमारे चुनाव नियमों की अस्पष्टता के कारण अथवा अधिकारियों का जिम्मेदारी से पलायन कर जाना इसका कारण है।

 

अभी यूपी में, तमिलनाडु में, पंजाब और उत्तराखण्ड में विधानसभाओं के चुनाव हुए। समाजवादी पार्टी ने हाईस्कूल पास करने पर टेबलेट, इण्टर पास को लैपटॉप देने का वादा किया था। बेरोजगारों को तीन हजार रू. मासिक भत्ता देने की घोषणा की थी। किसानों को ऋण माफी की घोषणा। हर मुस्लिम बालिका को तीस हजार रूपए देने का वादा। हारी हुई पार्टियों की बात अभी नहीं करते।

 

तमिलनाडु में जयललिता ने सभी राशन कार्ड धारियों को टेबल पंखा तथा मिक्सर ग्राइण्डर देने की बात की थी। मुफ्त दुधारू पशु वितरण योजना, बी.पी.एल. परिवारों को 35 किलो चावल मुफ्त आदि घोषणाएं की थी। इन सभी दलों की घोषणाओं की शिकायत इसलिए वैध नहीं मानी गई, क्योंकि ये तो मात्र घोषणाएं थीं। वास्तविक खर्च नहीं था।

 

आज जब इनकी सरकारें बन गई और इन घोषणाओं को मूर्त रूप दिया जा रहा है, तब चुनाव आयुक्त कार्यालय मौन क्यों है? क्या हजारों करोड़ के खर्च चुनाव खर्च का अंग नहीं माने जाने चाहिए? क्या जनता के इस धन का चुनाव आयोग को लेखा नहीं मांगना चाहिए? आज तक तो ऎसा कभी नहीं हुआ। इससे बड़ा भ्रष्टाचार चुनाव संहिता के नाम पर क्या हो सकता है।

 

जनता की आंखों में सरकार की स्वीकृति के साथ धूल झोंकी जा रही है। न्यायालय में तो कोई जाकर रोने वाला चाहिए। वरना कौन दुश्मनी मोल ले! तब हर चुनाव में, हर दल जनता के धन की होली क्यों नहीं खेले? ऎसी घोषणाओं के बाद तो किसी प्रत्याशी को अघिक धन खर्च करने की भी जरूरत नहीं रह जाती। कोई भी अपराधी जेल में बैठकर इन घोषणाओं के सहारे चुनाव जीत सकता है। थोड़ा सा लेन-देन बढ़ा दे तो फरार घोषित लोग भी चुनाव जीत सकते हैं। कब पैदा होगा कृष्ण जो लोकतंत्र की लाज रखेगा।

 

गुलाब कोठारी

 

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