माननीय प्रधानमंत्री जी,
कल आपसे संवाद करके तथा आप द्वारा श्रद्धेय पिताजी का स्मरण किए जाने से पत्रिका परिवार, प्राकृतिक आपदा के इस दौर में, अति प्रेरित हुआ है। हमको यह सुनकर भी प्रसन्नता हुई कि आप आज तक प्रेस को विश्वसनीय और प्रभावी भी मान रहे हैं। आपका यह कहना कि “देश को जागरूक करने में, चेतना जगाने में प्रिंट मीडिया की भूमिका प्रशंसनीय रही है। इसकी विश्वसनीयता आज भी देश के सामान्य नागरिकों के दिलों में हैं। कोरोना संबंधी जानकारी देने के लिए आपको प्रशासन व सामान्य जनता के बीच लिंक के रूप में काम करने के लिए मैं आग्रह कर रहा हूं” प्रिंट मीडिया पाठक और वितरकों के मन में आत्मविश्वास को प्रतिष्ठित ही करेगा।
आपका कल का संवाद कोरोना विषयक प्रेस की भूमिका से जुड़ा था। आपातकाल की तरह प्राकृतिक प्रकोप के इस दौर में आपने जिस नेतृत्व क्षमता का आदर्श देश के समक्ष रखा है, इसी का परिणाम वह आत्मविश्वास था, जिसने 22 मार्च को जनता कर्फ्यू लागू कर दिखाया। दृढ़ नेतृत्व ही समाधान है। प्रश्न यह भी एक उठता है कि क्या कोरोना विश्व की अन्तिम महामारी होगी? यह तो परिणाम मात्र है। आज भी इसके कारणों पर चर्चा नहीं हो रही। कहते हैं कि चोर को नहीं, चोर की मां को मारो।
कौन है कोरोना की मां? कम होती रोग निरोधक क्षमता। विज्ञान ने आदमी की उम्र तो बढ़ा दी, किन्तु शक्ति भी उसी अनुपात में कम करता गया। विज्ञान व्यापार बन गया। शिक्षा ने भौतिकवाद को बढ़ावा दिया और विज्ञान ने सुविधाएं उपलब्ध करवा दीं। कृत्रिम रूप से उम्र को बढ़ा देना और बीमारी की राह पर खड़ा कर देना क्या एक ही बात नहीं है? कोरोना के आक्रमण के पीछे भी कहीं न कहीं प्रकृति का अपमान ही छिपा है। हमको मां-बाप ने नहीं, प्रकृति ने पैदा किया है। शरीर प्रकृति ने दिया, संचालन-पोषण का भार भी प्रकृति उठाती है। कर्म जरूर व्यक्ति के प्रभाव ड़ालने वाले होते हैं। सच तो यह है प्रकृति की चौरासी लाख योनियों में मनुष्य के अतिरिक्त कोई भी प्राणी मर्यादा का उल्लंघन नहीं करता। इस चक्र में मनुष्य का होना ही समस्या है। पेड़ के हर पत्ते को जड़ के साथ एक रहकर जीना ही पड़ेगा। विकल्प नहीं है। व्यक्ति अकेला “वसुधैव कुटुम्बकम” के बाहर सुखी कैसे रहेगा। जो भी डाल पेड़ से कटेगी, सूख जाएगी।
ऋतु चक्र के अनुसार आज नव संवत्सर का पहला दिन है। नववर्ष का मंगल प्रवेश। आपको भी, देश को भी बधाई। इसके साथ ही ग्रीष्म ऋतु दस्तक दे रही है। कोरोना वायरस की शुरूआत बसंत से हुई थी। ग्रीष्म में उतरेगी। वर्षा ऋतु में पुन: आवेश बढेगा। इस बार तो वर्षा की कमी की घोषणा भी ज्योतिषी कर चुके हैं। शायद 31 मार्च का संदेश भी यही है। गुरू और शनि की युक्ति 30 मार्च से शुरू होगी। न्याय काल, जैसा कर्म, वैसा फल रहेगा। आपने ग्रेटाथनबर्ग को संयुक्त राष्ट्र में सुना होगा। वह बोली थी “मैं स्कूल वापस जाना चाहती हूं, जो समुद्र के दूसरी ओर है। और आप कहते हैं कि युवा हमारी उम्मीद हैं! आप लोगों ने मेरे सपने चुरा लिए, मेरा बचपन चुरा लिया। लोग संकट ग्रस्त हैं। मर रहे हैं। पूरा पारिस्थितक तंत्र बर्बाद हो रहा है। और आप पैसे की बात कर रहे हैं। इकॉनामिक ग्रोथ की परिकथाएं सुना रहे हैं।
आपकी हिम्मत कैसे हुई?” कोस रही थी, विज्ञान को, सत्ताधीशों द्वारा प्रकृति के दोहन को। छीना जा रहा है, भविष्य आने वाली संतानों का। छीला जा रहा है बदन कुदरत का। क्या माफ करेगी वह हमको?
अन्न को विष बना ड़ाला विदेशी खाद से, कीटनाशक से, उन्नत बीजों से। विज्ञान पैदा नहीं कर पाया शिव, नीलकण्ठ। विष्णु के क्षीर सागर का अमृत भी हो गया विष। दूध को माया ने जहर बना दिया। क्या इस क्षीर को पीकर किसी बालक की रोग निरोधक क्षमता सुरक्षित रह पाएगी? बालक तो लगता है महामारियों के मध्य ही जीता जाएगा। नकली दूध पीएगा, कच्चा कीटनाशक युक्त डेयरी का दूध पीएगा, विदेशी गायों का घी-मक्खन खाकर कृष्ण तो नहीं बनेगा। बाल सखाओं के साथ मौत को कौन चुराएगा। माननीय मोदी जी, कृष्ण एक स्वास्थ्य का अभूतपूर्व स्वरूप (सिद्धांत रूप) देश को दे गए- “गाय का, बिलौवणे का, मक्खन खाओ, भले ही चुराकर खाना पड़े।” आज विज्ञान ने उसे भी विषाक्त कर दिया। अब तो डेयरी उत्पादों के उपयोग पर भी प्रतिबंध लगने लगे हैं।
यही कोरोना वायरस की समस्या का हल भी है। आप नियमित रूप से जनता से जुड़े रहिए। जनता का आत्म-विश्वास कोरोना से जूझता रहेगा । स्वयं स्वास्थ्य मंत्री भी दिन-ब-दिन प्रेस के साथ जुड़े रहें तो महत्वपूर्ण होगा । प्रेस तो हर आपात स्थिति में एक जुट रहा ही है। आगे भी रहेगा।
नमस्कार!
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